शिक्षा एक छोटा सा शब्द है, परन्तु शिक्षा का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा के बिना मानव का जीवन पशु के समान है। शिक्षा मानव को इंसान बनाती है, उसे सुसंस्कृत बनाती है, उसका मानसिक विकास करती है। यहाँ तक की शिक्षा से ही मानव की सभ्यता और संस्कृति का विकास होता है। कहा भी गया है कि , ' सा विद्याया विमुक्तय अर्थात विद्या वह है जो हमें मुक्ति प्रदान करे। मुक्ति किससे ? इस संसार से..? नही। इस संसार के दुखों से, समस्याओं से हमें मुक्ति दिलाए, वही सच्ची शिक्षा है।
आज शिक्षा का अर्थ केवल अच्छे अंक पाना रह गया है। विद्यार्थी केवल अधिक से अधिक अंक पाना चाहता है। उसके लिए वह दिन-रात एक करके पढाई करता है। परंतु इससे वह अपने अपने परिवार से, अपने दोस्तों से, अपने समाज से कट जाता है। उसे समाज से मिलने वाली शिक्षा नही मिल पाती है । सामाजिक रिश्तों को भूल जाता है। समाज के प्रति अपने दायित्वों को नजरअंदाज करने लगता है और केवल अच्छे अंक लाने को ही अपने जीवन का लक्ष्य मान लेता है।
आजकल शिक्षा का सही अर्थ कहीं विलुप्त सा हो गया है। केवल पुस्तक या अख़बार पढ़ लेना ही शिक्षा नही है या विद्यालय में कुछ कक्षा पास कर लेना भी शिक्षा नही है। यह तो मात्र साक्षर होना है। आजकल आपने देखा और सुना होगा, उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त पाये जाते है। मैं तो कहूँगा कि पढ़े-लिखे व्यक्ति अपना रास्ता भटक गए है। इसमें सबसे ज्यादा भूमिका आज ली शिक्षा - प्रणाली की है। जो मानव को शिक्षित नही केवल साक्षर बनाती है। शिक्षित होने के लिए हमें अपने आपको समझना होगा, इस समाज को समझना होगा। तभी हम सच्चे अर्थों में शिक्षित हो पाएंगे।
आज के समय में हमारे बच्चों को नैतिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। इंसान अपने नैतिक - मूल्यों को खोता जा रहा है। मोटी तनख्वाह पाने वाला एक नोकरशाह भी रिश्वत लेने में आगे रहता है। जिसके पास किसी चीज की कमी नही है। फिर भी वह आपराधिक वारदातों को अंजाम देता पाया जाता है। यदि हमें इन सब को रोकना है तो अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा के साथ साथ मानवीय मूल्यों का भी पाठ पढ़ाना होगा। तभी हमारा समाज सही अर्थों में शिक्षित होगा।
मुकेश महावर
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